MDH की प्रेरक कहानी (महाशय धरमपाल गुलाटी)




कैसे एक ताँगेवाला बना मशालों का बादशाह :-

कुछ brands ऐसे होते है जिन्हें हम बरसोसे इस्तेमाल करते है और वह इस कदर हमारे ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाते है की उनके बिना हम चीजों normal तरीके से देख नहीं सकते।
भारतीय खाने में मसालों का एक अमूल्य स्थान है। राजा-महाराजा के ज़माने से बनने वाले यह मसाले भारतीय खाने को जायकेदार बनाते है। इन् मसालों को बनाने वाली बहुत ही गिनी चुनी कंपनीया है जो मसालों का स्वाद और quality सालों साल बरक़रार रख पायी है। भारतीय मसालों में एक ब्रांड ऐसा है जो सालों से हमारे घरोंमे इस्तेमाल हो रहा है। आपने सही पहेचाना – यह ब्रांड है – MDH!

MDH या महाशिअन दी हात्ती लिमिटेड भारतीय मसालो और मिश्रण के उत्पादक, वितरक और निर्यातक है। खाने में उपयुक्त बहोत से मसालो के निर्माण में इनका एकाधिकार है। MDH कंपनी की स्थापना 1919 में महाशय चुनी लाल ने सियालकोट में एक छोटी दुकान खोलकर की। तभी से वह पुरे देश में बढ रहा है, और कई देशो में भी उनके मसालो का निर्यात किया जा रहा है। उनकी यह संस्था महाशय चुनी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट से भी जुडी हुई है।

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महाशय धरमपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिताजी महाशय चुन्नीलाल और माताजी माता चनन देवी लोकोपकारी और धार्मिक थे और साथ ही वे आर्य समाज के अनुयायी भी थे।

1933 में, 5 वी कक्षा की पढाई पुरी होने से पहले ही उन्होंने स्कूल छोड़ दी थी।
1937 में, अपने पिता की सहायता से उन्होंने छोटा व्यापार शुरू किया, बाद में कुछ समय बाद उन्होंने साबुन का व्यवसाय और बाद में उन्होंने कुछ समय तक जॉब किया। फिर कपड़ो के व्यापारी बने, फिर बाद में वे चावल के भी व्यापारी बने। लेकिन इनमे से किसी भी व्यापार में वे लंबे समय तक नही टिक सके।  बाद में उन्होंने दोबारा अपने पैतृक व्यवसाय को ही करने की ठानी, जो की मसालो का व्यवसाय था, जिसे देग्गी मिर्च वाले के नाम से जाना जाता था और यह पुरे भारत में प्रचलित था।





देश के विभाजन के बाद, वे भारत वापिस आये और 27 सितम्बर 1947 को दिल्ली पहुँचे।उस समय उनके पास केवल 1500 रुपये ही थे, जिनमे से 650 रुपये का उन्होंने टांगा ख़रीदा और न्यू दिल्ली स्टेशन से कुतब रोड और करोल बाग़ से बड़ा हिन्दू राव तक उसे चलाते थे। बाद में उन्होंने छोटे लकड़ी के खोके ख़रीदे और अपने पारिवारिक व्यवसाय को शुरू किया और पुनः महाशिअन दी हात्ती ऑफ़ सियालकोट “देग्गी मिर्च वाले” का नाम रोशन किया।

व्यवसाय में अटूट लगन, साफ़ दृष्टी और पूरी ईमानदारी की बदौलत महाशयजी का व्यवसाय ऊंचाइयों को छूने लगा था। जिसने दुसरो को भी प्रेरीत किया। बहोत कम लोग ही महाशयजी की सफलता के पीछे के कठिन परीश्रम को जानते है, उन्होंने अपने ब्रांड MDH का नाम रोशन करने के लिए काफी महेनत की। और आज MDH ब्रांड मसालों के भारतीय बाज़ार में १२ % हिस्से के साथ दुसरे क्रमांक पर विराजमान है।

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महाशयजी के पास अपनी विशाल सफलता का कोई रहस्य नही है। उन्होंने तो बस व्यवसाय में बनाये गए नियमो और कानूनों का पालन किया और आगे बढ़ते गए, व्यवसाय को आगे बढाने के लिए उनके अनुसार ग्राहकों को अच्छी से अच्छी सेवा के साथ ही अच्छे से अच्छा उत्पाद मिलना भी जरुरी है। उन्होंने अपने जीवन में अपने व्यवसाय के साथ ही ग्राहकों का भी ध्यान रखा है। मानवता की सेवा करने से वे कतई नही चूकते, वे हमेशा धार्मिक कार्यो के लिये तैयार रहते है।

नवंबर 1975 में 10 पलंगों का एक छोटा सा अस्पताल आर्य समाज, सुभाष नगर, न्यू दिल्ली में शुरू करने के बाद, उन्होंने जनवरी 1984 में अपनी माता चनन देवी की याद में जनकपुरी, दिल्ली में 20 पलंगों का अस्पताल स्थापित किया, जो बाद में विकसित होकर 300 पलंगों का 5 एकर में फैला अस्पताल बना। इस अस्पताल में दुनिया के सारे नामचीन अस्पताल में उपलब्ध सुविधाये मुहैया कराइ जाती है, जैसे की एम्.आर.आई, सी.टी. आई.वि.एफ इत्यादि।

उस समय पश्चिमी दिल्ली में इस तरह की सुविधा से भरा कोई और अस्पताल ना होने की वजह से पश्चिमी दिल्ली के लोगो के लिये ये किसी वरदान से कम नही था। महाशयजी रोज़ अपने अस्पताल को देखने जाया करते थे और अस्पताल में हो रही गतिविधियों पर भी ध्यान रखते थे। उस समय की ही तरह आज भी उस अस्पताल में गरीबो का इलाज़ मुफ़्त में किया जाता है। उन्हें मुफ़्त दवाईया दी जाती है और वार्षिक रुपये भी दिए जाते है।




महाशय धरमपाल बच्चों की भी सहायता करने से नही चुके, कई स्कूलो को स्थापित कर के उन्होंने बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा दिलवाई। उनकी संस्था कई बहुउद्देशीय संस्थाओ से भी जुडी है, जिसमे मुख्य रूप से MDH इंटरनेशनल स्कूल, महाशय चुन्नीलाल सरस्वती शिशु मंदिर, माता लीलावती कन्या विद्यालय, महाशय धरमपाल विद्या मंदिर इत्यादि शामिल है।

उन्होंने अकेले ही 20 से ज्यादा स्कूलो को स्थापित किया, ताकि वे गरीब बच्चों और समाज की सहायता कर सके। रोज वे अपना कुछ समय उन गरीब बच्चों के साथ व्यतीत करते है और बच्चे भी उनसे काफी प्यार करते है। जो इंसान करोडो रुपयो का व्यवसाय करता हो उसे रोज़ उन गरीब बच्चों को समय देता देख निश्चित ही हमें आश्चर्य होंगा।आज कोई यह सोच भी नही सकता की उनकी बदौलत कितने ही गरीब लड़कियो का विवाह हुआ है और आज वे सुखरूपि अपना जीवन जी रहे है। उनकी इस तरह की सहायता के लिये हमें उनका तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहिये।


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उन्होंने बहोत सी सामाजिक संस्थाओ से भी उनकी सहायता के लिये बात की है और बहोत सी गरीब लड़कियो का खर्चा उन्ही की संस्था उठाती है। आज अपनी संस्थाओ में पल रहे सभी गरीब बच्चों की जिम्मेदारी महाशय धरमपाल ने ली है, उनकी स्कूल फीस से लेकर किताबो तक और जरुरत की चीजो तक का खर्चा महाशयजी ही देते है, इस बात से उन्होंने कभी इंकार नही किया।

वे धर्मो में भेदभाव किये बिना सभी को समान धर्म की शिक्षा देते है और प्रेमभाव और भाईचारे से रहने की सलाह देते है। उनकी छत्र-छाया में सभी समुदाय के लोग रहते है, जिनमे हिन्दू, मुस्लिम और सिक्ख शामिल है। वह सभी धर्मो के त्योहारो को भी मनाते है। कोई भी बात जो धर्मो का विभाजन करते है, उन बातो का वे विरोध करते है। शायद, उनकी महानता और उनके पीछे कोई आरोप ना होने का यही एक कारण होंगा।
महाशय धरमपाल का दर्शनशास्त्र यही कहता है की, “दुनिया को वह दे जो आपके पास सबसे बेहतरीन हो, और आपका दिया हुआ बेहतरीन अपने आप वापिस आ जायेगा।”

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उनकी द्वारा कही गयी ये बात हमे सच साबित होती हुई दिखाई देती है। आज मसालो की दुनिया का MDH बादशाह कहलाता है। वे सिर्फ मसालो का ही नही बल्कि समाज में अच्छी बातो का भी उत्पादन करते है। उन्होंने कई अस्पतालों, स्कूलो और संस्थाओ की स्थापना अब तक की है। आज देश में बच्चा-बच्चा MDH के नाम से परीचित है।
आज MDH कंपनी १०० से ज्यादा देशोंमे अपने ६० से अधिक प्रोडक्ट्स बेच रही है। यह मसाले बनाने के लिए लगनेवाली सामग्री केरल, कर्नाटक और भारत के अलग अलग हिस्सोंसे आती है। कुछ सामग्री ईरान और अफ़गानिस्तान से भी लायी जाती है।
MDH की सफलता के पीछे छुपी मेहनत का नतीजा है की ९४ साल की उम्र में धरम पाल जी, भारत में, २०१७ में सबसे ज्यादा कमाने वाले, FMCG सीईओ बने।
हमें विश्वास है की महाशयजी का यह योगदान देश के और देश में पल रहे गरीबो के विकास में महत्वपूर्ण साबित होगा। निश्चित ही वे वर्तमान उद्योजको के प्रेरणास्त्रोत होंगे। निश्चित ही महाशयजी इस सम्मान के काबिल है, उनके इस योगदान का हमे सम्मान करना चाहिये।

आज की नयी पीढ़ी के लिए महाशयजी ने एक बेहतरीन उदाहरण रखा है जिसे देखकर सभी युवा व्यापारी और entrepreneurs को उनके नक़्शे कदम पर चलना चाहिए। मसालोंके विशाल व्यापार को कुशलता से संभालने के साथ ही उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्ताव्यो को भी बखूभ ही निभाया है। ज्ञानी पंडित उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें सलाम करता है।

 

Collected by :- facebook/Dekho magar Pyaar se

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