ब्रम्हपुत्र नदी । संस्कृतियों और सभ्यताओं के मिलन की गवाह
ब्रह्मपुत्र नदी विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के समन्वय का जिंदा मिसाल है। विख्यात गायक डॉ. भूपेन हजारिका के गीत की इन पंक्तियों में महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गहराई को महसूस किया जा सकता है - महाबाहु ब्रह्मपुत्र, महामिलनर तीर्थ कोतो जुग धरि, आइसे प्रकासी समन्वयर तीर्थ (ओ महाबाहु ब्रह्मपुत्र, महामिलन का तीर्थ, कितने युगों से व्यक्त करते रहे समन्वय का अर्थ) लोकगीतों के अलावा ब्रह्मपुत्र पर न जाने कितने गीत लिखे गए हैं और अब भी लिखे जा रहे हैं। सिर्फ भूपेन दा ने इस पर कम से कम दर्जन भर गीतों को आवाज दी है। ब्रह्मपुत्र असमिया रचनाकारों का प्रमुख पात्र रहा है। चित्रकारों के लिए आकर्षक विषय। नाविकों के लिए जीवन की गति है तो मछुआरों के लिए जिंदगी। पूर्वोत्तर में प्रवेश करने का सबसे पुराना रास्ता। जब यातायात का अन्य कोई साधन नहीं था, तब इसी के सहारे पूरे देश का संबंध पूर्वोत्तर के साथ था।
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ब्रह्मपुत्र सिर्फ एक नदी नहीं है। यह एक दर्शन है-समन्वय का। इसके तटों पर कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिलन हुआ है। आर्य-अनार्य, मंगोल-तिब्बती, बर्मी-द्रविड़, मुग़ल-आहोम संस्कृतियों की टकराहट और मिलन का गवाह यह ब्रह्मपुत्र रहा है। जिस तरह अनेक नदियां इसमें समाहित होकर आगे बढ़ी हैं, उसी तरह कई संस्कृतियों ने मिलकर एक अलग संस्कृति का गठन किया है। ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर की, असम की पहचान है, जीवन है और संस्कृति भी। असम का जीवन तो इसी पर निर्भर है। असमिया समाज, सभ्यता और संस्कृति पर इसका प्रभाव युगों-युगों से प्रचलित लोककथाओं और लोकगीतों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए एक असमिया लोकगीत को देखा जा सकता है-
ब्रह्मपुत्र कानो ते, बरहमूखरी जूपी, आमी खरा लोरा जाई
ऊटूबाई नीनीबा, ब्रह्मपुत्र देवता, तामोल दी मनोता नाई।
(ब्रह्मपुत्र के किनारे हैं बरहमूथरी के पेड़, जहां हम जलावन लाने जाते हैं। इसे निगल मत लेना, ब्रह्मपुत्र देव! हमारी क्षमता तो तुम्हें कच्ची सुपाड़ी अर्पण करने तक की भी नहीं है)
अर्थव्यवस्था सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण
1954 के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किए गए थे, बांग्लादेश में जमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती है। जबकि उसकी अनुमानित क्षमता काफ़ी है। अकेले भारत में ही यह लगभग हो सकती है 12,000 मेगावाट है। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं। जिनमें से सबसे उल्लेखनीय 'कोपली हाइडल प्रोजेक्ट' है और अन्य का निर्माण कार्य जारी है।
नौ-संचालन और परिवहन
तिब्बत में ला-त्जू (ल्हात्से दज़ोंग) के पास नदी लगभग 644 किलोमीटर के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। चर्मावृत नौकाएँ (पशु-चर्म और बाँस से बनी नौकाएँ) और बड़ी नौकाएँ समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊँचाई पर इसमें यात्रा करती हैं। त्सांगपो पर कई स्थानों पर झूलते पुल बनाए गए हैं।
असम और बांग्लादेश के भारी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज़्यादा अंतःस्थलीय नौ-संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नदी ने पंश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। यद्यपि यदा-कदा राजनीतिक विवादों के कारण बांग्लादेश जाने वाला यातायात अस्त-व्यस्त हुआ है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से समुद्र से 1,126 किलोमीटर की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित लान्च और स्टीमर भारी भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं।
1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए साराईघाट पुल बनने तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेज़पुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्त्वपूर्ण और बांग्लादेश में तो एकमात्र आधन नौकाएँ ही हैं। सादिया, डिब्रगढ़, जोरहाट, तेज़पुर, गुवाहाटी, गोवालपारा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं। बांग्लादेश में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं, कुरीग्राम, राहुमारी, चिलमारी, बहादुराबाद घाट, फूलचरी, सरीशाबाड़ी, जगन्नाथगंज घाट, नागरबाड़ी, सीरागंज और गोउंडो घाट, अन्तिम रेल बिन्दु बहादुराबाद घाट, फूलचरी, जगन्नाथगंज घाट, सिराजगंज और गोवालंडो घाट पर स्थित है।
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ब्रह्मपुत्र का ऊपरी मार्ग 18वीं शताब्दी में ही खोज लिया गया था। हालाँकि 19वीं शताब्दी तक यह लगभग अज्ञात ही था। असम में 1886 में भारतीय सर्वेक्षक किंथूप (1884 में प्रतिवेदित) और जे.एफ़. नीढ़ैम की खोज ने त्सांग्पो नदी को ब्रह्मपुत्र के ऊपरी मार्ग के रूप में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में कई ब्रिटिश अभियानों ने त्सांग्पो की धारा के प्रतिकूल जाकर तिब्बत में जिह-का-त्से तक नदी के पहाड़ी दर्रों की खोज की।
“ढोला – सदिया पुल” : उत्तर-पूर्व के विकास में क्रांति को प्रेरित करेगा
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई को लोहित नदी पर बने देश के सबसे बड़े नदी पुल को राष्ट्र को समर्पित किया। इसकी लम्बाई 9.5 किलोमीटर है। इस पुल का नाम दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता असम के महान गायक भूपेन हज़ारिका के नाम पर रखा गया, जिनका जन्म सदिया में ही हुआ था। इस पुल के माध्यम से एक तरफ जहाँ उत्तरी–पूर्वी राज्यों की भौतिक अवसंरचना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ, देश की सामरिक स्थिति को मज़बूती मिलेगी। इसके द्वारा यात्रा में लगभग 165 किलोमीटर की दूरी तथा 8 घंटे के समय की बचत होगी।
इस पुल का निर्माण असम एवं अरुणाचल के मध्य स्थित लोहित नदी पर किया गया है, जोकि ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है। यह अरुणाचल के गोगामुख कस्बे में अवस्थित है। इस पुल के साथ-साथ यहाँ एक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) एवं एक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (IARC) का भी उद्घाटन किया गया।
उद्घाटन करते समय प्रधानमंत्री ने उत्तर-पूर्वी राज्यों को “अष्टलक्ष्मी” का नाम दिया तथा इस क्षेत्र के विकास हेतु कनेक्टिविटी पर ज़ोर दिया।
21वीं सदी में उत्तर-पूर्वी राज्यों को पंचपथ से जोड़ने की बात कही गई है। ये पंचपथ हैं- राजमार्ग, रेलमार्ग, जलमार्ग, वायुमार्ग तथा सूचना मार्ग। ऐसा हो जाने से उत्तर-पूर्वी राज्य देश के आर्थिक विकास के साथ जुड़ सकेंगे।
इसके माध्यम से उत्तर-पूर्वी राज्यों को दक्षिण-पूर्वी एशिया के “ट्रेड हब” के रूप में विकसित करने के साथ-साथ टूरिज़्म को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। अत: इससे क्षेत्र के विकास के साथ-साथ लोगों को रोज़गार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रत्येक कोने को बिजली, सड़क, ऑप्टिकल फाइबर आदि अवसंरचनाओं के माध्यम से जोड़ा जाएगा।
देखा जाए तो इस पुल का सामरिक महत्त्व भी है क्योंकि यह चीनी हवाई सीमा से महज़ 100 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह सैनिकों की आवाजाही के साथ-साथ सेना से संबंधित सामग्री को लाने-ले जाने में भी मदद करेगा। इसके माध्यम से लगभग 60 टन वज़नी युद्धक टैंकों को भी ले जाया जा सकता है।
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नममी ब्रह्मपुत्र - भारत का सबसे बड़ा नदी महोत्सव
सन २०१७ में असम में ब्रम्हपुत्र नदी के तट पर भारत का सबसे बड़ा नदी त्यौहार 'नममी ब्रह्मपुत्र नदी महोत्सव' मनाया गया जो की ब्रम्हपुत्र नदी के इतिहास और प्रकृति पे आधारित है इसका उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भूटान के प्रधान मंत्री शशिंग टोबगे और असम के मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल की उपस्थिति में किया था। इसमें पारंपरिक प्रदर्शनी और फिल्म शो सहित कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल की गयी थी ।इस त्यौहार में इस दिव्य नदी को नमन करते हुए इसके प्राकृतिक चित्र पे आधारित एक संगीत रची गयी थी और इसे असम के प्रतिभावान संगीतकार पापोन ने कंपोज़ किया था।
प्रणमू ब्रह्मपुत्र
नमामि ब्रह्मपुत्र
कभी सांत बेहे
कभी रुद्र
पल पल एक नया चित्र
ओ जिंदगी के सखा
यूँ ही बहना
तु हे सृस्टि ब्रह्मा
तेरे पिता
प्रनामु ब्रह्मपुत्र
नमामि ब्रह्मपुत्र
तेरी लहरों में पिता की बाहें मिले
तेरी बूंदों से फसलोंकी मोती खिले
सदीयों से तेरे किनारे जीवन का है खजाना
तु बहना यूँ ही बहना
ये धरती सा जल कर बेहना
तु देश के कंधे का
है नीला दुशाला
प्रणमू ब्रह्मपुत्र
नमामी ब्रह्मपुत्र
तेरे लहरों में
जीवन के अहट मिले
तेरी बूंदों से दुनिआ के आंसू धुले
नदियां नही नद कहे तुझको
कभी क्रोध मट दिखलाना
तेरा सदियों से जारी है बहना
तुझे क्या क्या नही पड़ा सहना
यहाँ बसी हर धड़कन का
तू ही है रखवाला
प्रणमू ब्रह्मपुत्र
नमामि ब्रह्मपुत्र
कभी सांत बेहे
कभी रुद्र
पल पल एक नया चित्र
ओ जिंदगी के सखा
यूँ ही बहना
तु हे सृस्टि ब्रह्मा
तेरे पिता
प्रनामु ब्रह्मपुत्र
नमामि ब्रह्मपुत्र
জয় আই অসম
नमामि ब्रह्मपुत्र
जय भारत जय हिन्द
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