|| कसौटी तक़दीर की ||
तक़दीर में लिखी चीज़े, अक्सर कम पड़ जाती है.
आशा होती है अनेक खुशियों की, पर ग़मों तक सिमट जाती है..
मैं भी अक्सर सोचता हूं, की तक़दीर होती है या बनायीं जाती है.
मेहनत सारी क्या, सचमें हमेशा रंग लाती है..
सोचकर इन बातों को, अंधकार कम-कम सी जाती है.
वक़्त दौड़ती रहती, और सांसे थम-थम सी जाती है..
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यूँ तो हासिल होना सब, सबको नसीब नहीं.
राह कोई और होती है, हम घूमते हैं और कहीं..
अब इम्तहान आगे और है, खुशियां पाने में.
रोते को हँसाने में और, रूठे को मानाने में..
हर वक़्त को कुछ ऐसे सम्हालो यारो.
कि पूरे सोने भर जाये, तुम्हारे खजाने में..
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गरीब होना गुनाह नहीं, गुनाह है गरीब मरना.
हिम्मत हो तो खोदो दरिया में, और सीख़ लो दरिया तैरना..
ये तराना हो सबका की, हम और हमहीसे है तक़दीर हमारी.
किस्मत दरवाज़े पर होती है उसके ही, जिसने कभी ना उम्मीद हारी..
चल पड़ो उन राहों की ओर, जिसमे है तक़दीर तुम्हारी.
जिंदगी आबाद हो जाएगी, खुशियां हो जायगी हासिल सारी..
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ख्वाबों की ऊंचाई आज बढ़ा दो यारों.
हार से उभरकर, कदम आगे बढ़ा लो सारो..
जब हारने का डर सताए, और मंजिल दूर नजर आए.
तब लो एक लम्बी सांस, और एक कदम बढाकर तो देखो..
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